Monday, January 10, 2011

अर्ज़ करता हूँ... (10th Jan 2010)

अर्ज़ करता हूँ...

नींद आँखों में नहीं, सोने का प्रयास है!
रात ये ढलती नहीं, 'डी' नए सुबह की आस है!!

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हमारी तन्हाई से जुदा तो कर दिया तुमने मगर!
अब तुम ही कहो 'डी' हम जियेंगे किस के सहारे!!

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ज़िन्दगी में तन्हाई होती है कितनी निराली,
ज़िन्दगी में, तन्हाई होती है कितनी निराली!
जिसे चाहिए उसे मिलती नहीं कभी,
जिसे चाहिए, उसे मिलती नहीं कभी,
जिसे मिलती है, वो शून्य में खो जाता है!!

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तेरी मेहरबानियों से तो बेहतर ग़मों से भरी वो ज़िन्दगी थी हमारी!
हमने ऐ ज़िन्दगी कब तुझे महेरबान होने को कहा था!!

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बहक जाये ये ज़िन्दगी भी तो क्या,
बहक जाये, ये ज़िन्दगी भी तो क्या!
इस ग़म को मगर 'डी' बहलायेगा कौन?

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न कर ऐतबार 'डी' इस ज़िन्दगी का
न कर, ऐतबार 'डी' इस ज़िन्दगी का!
क्या पता कौन से पल में ये धोका दे जायेगा!!

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'डी' एक तू ही नहीं है, जो इस दुनिया में तन्हा है
हर शक्श जो ये दावा करते हैं साथ होने का,
हर शक्श, जो ये दावा करते हैं साथ होने का
तन्हा है दुनिया के इस मेले में
एक तेरा ही नहीं जो रोता है दिल 
एक तेरा ही नहीं, जो रोता है दिल 
दिखा मुझे एक दिल जो हँसता है हर पल ज़िन्दगी में
दर्द तो होगा 'डी', संभाल भी जायेगा तू वक़्त-ए-तन्हाई
दर्द तो होगा 'डी', संभाल भी जायेगा तू वक़्त-ए-तन्हाई
कुछ सीख ले अब भी इस दुनिया से 
नहीं तो इस मेले में धक्खा देनेवाले बहुत से हैं!!

--- स्वरचित ---

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