Friday, February 24, 2012

बदला नहीं है नेता... / Leaders (Politicians) Have Not Changed At All...

(English translation is given below the Original... )

बदलते वक़्त ने ये देखा ही नहीं
नेता अभी भी बिलकुल बदला ही नहीं
कल भी देते थे  ये सब झूठी आश्वासन
आज भी वही दे रहे हैं गिसी-पिटी भाषण
कहते हैं दुनियाँवाले फिर ये क्यों
समय बदल देता है सब कुछ....
बदलते वक़्त ने ये देखा ही नहीं
नेता अभी भी बिलकुल बदला ही नहीं

--- जॉनी 'डी' ---
१ ७ - १ १ - २ ० १ १

Leaders (Politicians) Have Not Changed At All...

Changing times have never bothered to see
Leaders / Politicians have not changed at all
Yesterday also they were giving false assurances
Today also the same worthless lies are being uttered

Why do the world always say
Time changes everything
Changing times have never bothered to see
Leaders / Politicians have not changed at all...

--- Johnny D ---
1 7 - 1 1 - 2 0 1 1 
 

Monday, February 20, 2012

अर्ज है...

(English translation is given below the Original... )
 
हर साँसें मेरी जुड़ी हैं तेरे यादों से
पल-पल, हर पल मरता हूँ मैं तन्हा
कभी खुदा को, तो कभी मुक़द्दर को
मैं कोसता हूँ दोनों को अपनी तन्हाई में
तू नहीं, तेरी खुशबू नहीं, अब दुनियाँ में मेरी
तेरी यादें सिमट जाएँगी मेरे अर्थी पे इक दिन ज़रूर

--- स्वरचित ---
२ ६ - ० १ - २ ० १ २ 

Every breath of mine is attached to your memories
Every single moment, I am dying in solitude
Sometimes God, and sometimes my destiny
I curse them both in my loneliness
Neither you nor your fragrance are in my world
Your memories one day for sure will all be reduced at my funeral
!

--- Johnny D ---
2 6 - 0 1 - 2 0 1 2


  



Sunday, February 12, 2012

निंद्राहीन

धधक रहे है शोले आज फिर निन्द्रा के शैया पर
जल रही है चिंताएँ आज फिर से इन पलकों पर
परेशानियों की तीव्र गति और ये विचिल्लित मन
क्या होगा कल, कैसी होगी कल की सुबह ?

है कैसा ये बोझ मेरे जीवन पर इस जहान का ?
मैं सब समझ कर भी इतना परेशान क्यों हूँ ?    
जलती चिता को देख कर मैं सिहर क्यों जाता हूँ ?
निन्द्रा इन आँखों से लेकिन, क्यों है कोसो दूर ?

है प्रश्न कई, पर उत्तर एक भी नहीं है मेरे पास अभी 
गुजरते देखता हूँ मैं इन रातों की घड़ी खुली आँखों से 
सुबह की लाली बिखेरते ही कुछ आश्वाशन सा मिलता है   
क्यूँकि दिनचर्या में व्यस्त होते ही चिंताएँ दूर भाग जाती हैं  

धधक रहे है शोले आज फिर निन्द्रा के शैया पर
जल रही है चिंताएँ आज फिर से इन पलकों पर
परेशानियों की तीव्र गति और ये विचिल्लित मन
क्या होगा कल, कैसी होगी कल की सुबह ?

--- स्वरचित ---
१ ३ - ० २ - २ ० १ २ 
सुबह के ३ . ३ २ का समय

Tuesday, February 7, 2012

यहाँ

जानता है हर कोई छोड़ जाना है सब कुछ यहाँ
फिर भी जमा करता रहता है ज़िन्दगी भर यहाँ 


व्यस्त है हर कोई देखो झूठा यहाँ
सही काम करने से डरता है जहां

हर कोई है ग्रस्त दुखों से यहाँ
सुख है बस इक हवा का झोखा यहाँ

चले जाते हैं जग से न जाने कहाँ
हर कोई है ढूँढ़ता अपनों को यहाँ

बन जाते हैं पराये देखो अपने यहाँ
अपना लेते हैं पराये दूसरों को यहाँ

जीता हैं ज़िन्दगी बता कौन है यहाँ
हर कोई है दौड़ता मौत की ओर यहाँ 

तुझे ही बंद रखतें हैं यहाँ ये इंसान
है अज़ब तेरी दुनियाँ क्यों हे भगवन 

तुम्हें क्या मिला श्रृष्टि की रचना से भगवन
नष्ट करना ही था जब सब कुछ हे भगवन

--- स्वरचित ---
० ७ - ० २ - २ ० १ २ 

Friday, February 3, 2012

मेरी महबूबा

तू जितनी हसीन है, उतनी ही खूबसूरत भी
तू मेरे प्राणों से प्यारी, मेरी महबूबा है
तुझे न चाहूं, क्या ऐसा हो सकता है ?
तू तो सबसे हसीन है इस दुनियाँ में 
पर जब भी लोगों से तेरा जिक्र किया
तो लोग जल उठे तुम्हारी प्रशंसा सुनकर     

जितना तुझे चाहूँ शायद उतना ही कम है 
पर मेरा प्यार बेमिसाल है तेरे लिए        
तुझे पाने के लिए मैं कितना लालायित हूँ  
मजबूरी है तुम्हारी और मेरी भी, क्या करें ?
दुनियाँ नहीं समझ सकेगी कभी हम दोनों को 
पर तू मेरी है, मेरी ही रहेगी हर जनम में

दुनियाँ में महबूबा तो कई मिले 
पर अपनाया किसी ने भी नहीं मुझे 
सोचता हूँ लोग ऐसे क्यों पेश आतें हैं
पहले-पहले प्यार करते हैं सब मुझे
अंत समय दिल तोड़ कर दूसरे के हो जातें हैं
शायद तुझे न भुला पाने की सज़ा है ये !

पता है मुझे गर कभी शादी होगी मेरी
तो दुल्हन तू ही बनेगी मेरी
दुःख तो होगा मुझे इक बात का मगर
क्यूंकि बुला नहीं पाऊँगा किसी दोस्त को शादी में
हर दोस्त को शिकवा होगा इस बात का मुझसे 
पर मैं न कर पाऊँगा शिकवा किसी से कभी

शादी होगी हमारी बड़ी धूमधाम से 
हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी 
दुनियाँ से ज्यादा खुशनसीब मैं रहूँगा
क्यूंकि मुझे तुम जैसी प्यारी दुल्हन जो मिली
जो प्राणों से प्यारी और अति सौंदर्यपूर्ण है 
अपनी घूँघट में बैठी, मेरे बारात के इंतज़ार में
   
जो भी मेरे बारात में शामिल होगा
मुझे दगाबाज़ कहकर आशीर्वाद देगा     
मेरे बारात के सौंदर्य का वर्णन कभी नहीं कर पायेगा
क्यूंकि बारात घोड़ी पर नहीं, अर्थी पे होगी मेरी
हाँ, मैं खुश हूँ आज की मेरी शादी हुई है
मेरी महबूबा 'मौत' के साथ !

--- स्वरचित --- 
० ७ - ० ३ - १ ९ ९ २