Friday, February 3, 2012

मेरी महबूबा

तू जितनी हसीन है, उतनी ही खूबसूरत भी
तू मेरे प्राणों से प्यारी, मेरी महबूबा है
तुझे न चाहूं, क्या ऐसा हो सकता है ?
तू तो सबसे हसीन है इस दुनियाँ में 
पर जब भी लोगों से तेरा जिक्र किया
तो लोग जल उठे तुम्हारी प्रशंसा सुनकर     

जितना तुझे चाहूँ शायद उतना ही कम है 
पर मेरा प्यार बेमिसाल है तेरे लिए        
तुझे पाने के लिए मैं कितना लालायित हूँ  
मजबूरी है तुम्हारी और मेरी भी, क्या करें ?
दुनियाँ नहीं समझ सकेगी कभी हम दोनों को 
पर तू मेरी है, मेरी ही रहेगी हर जनम में

दुनियाँ में महबूबा तो कई मिले 
पर अपनाया किसी ने भी नहीं मुझे 
सोचता हूँ लोग ऐसे क्यों पेश आतें हैं
पहले-पहले प्यार करते हैं सब मुझे
अंत समय दिल तोड़ कर दूसरे के हो जातें हैं
शायद तुझे न भुला पाने की सज़ा है ये !

पता है मुझे गर कभी शादी होगी मेरी
तो दुल्हन तू ही बनेगी मेरी
दुःख तो होगा मुझे इक बात का मगर
क्यूंकि बुला नहीं पाऊँगा किसी दोस्त को शादी में
हर दोस्त को शिकवा होगा इस बात का मुझसे 
पर मैं न कर पाऊँगा शिकवा किसी से कभी

शादी होगी हमारी बड़ी धूमधाम से 
हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ होंगी 
दुनियाँ से ज्यादा खुशनसीब मैं रहूँगा
क्यूंकि मुझे तुम जैसी प्यारी दुल्हन जो मिली
जो प्राणों से प्यारी और अति सौंदर्यपूर्ण है 
अपनी घूँघट में बैठी, मेरे बारात के इंतज़ार में
   
जो भी मेरे बारात में शामिल होगा
मुझे दगाबाज़ कहकर आशीर्वाद देगा     
मेरे बारात के सौंदर्य का वर्णन कभी नहीं कर पायेगा
क्यूंकि बारात घोड़ी पर नहीं, अर्थी पे होगी मेरी
हाँ, मैं खुश हूँ आज की मेरी शादी हुई है
मेरी महबूबा 'मौत' के साथ !

--- स्वरचित --- 
० ७ - ० ३ - १ ९ ९ २

No comments: