Wednesday, March 30, 2011

अर्ज है...

भरी दुनिया में लुट गया है मजहार मेरा, ढूँढ़ता है अब क्या तू
खण्डहर बन जाये जब ये दुनिया तब महलों को तू ज़रूर ढूंढ  

--- स्वरचित ---  

Tuesday, March 29, 2011

दर्द का आशियाना

है ये कैसी मोहब्बत उनकी 'डी' 
है ये कैसी, मोहब्बत उनकी 'डी' 
दिल को बना डाला है दर्द का आशियाना

निगाहें उनकी ने चुरा ली हैं सारी नींदें 'डी'
निगाहें उनकी, ने चुरा ली हैं सारी नींदें 'डी'
रात को जागना अब आदत सी हो गयी है 

कह भी तो नहीं सकता उनसे मैं अभी
कह भी तो, नहीं सकता उनसे मैं अभी
साथ रहने में कितना सुकून-ऐ-दर्द है 

--- स्वरचित --- 

Friday, March 25, 2011

अर्ज है...

टूट कर भिखर जाता है ये दिल मगर
हर टुकड़ा 'डी' धडकना भूलता नहीं है  

पुकारता हुआ दुनिया से कहता है हर टुकड़ा 
मैं शहंशाह-ऐ-दर्द हूँ मगर प्यार बांटता हूँ 'डी' 

--- स्वरचित ---   


EXPERIENCE OF AN UNBORN CHILD IN WAR TORN COUNTRY...


(From my archive...)

NOTE: the poem is dedicated to all the pregnant
mothers of the world, who are living in war torn
regions... be it civil war or else military led war...

The day he was conceived
He heard the sound of a bomb
Inside his mother's womb
Shaken but safe inside
He grows hearing bullets
Missing narrowly pass his mother

He is yet to open his eyes
Mind you!
He is still to develop
The way one thinks
He has not even breathed
The polluted air of the world

He will know later
How his mother had struggled
Running almost everywhere
Saving him from bullets
Bombs, hunger and the world
To understand life

Unlike humans in the world
He finally arrives
His resume reads
Nine months experience
As he open his eyes
Crying out aloud!

His cry is misunderstood
His mother smiles at last
She shuts her eyes, as he opens his
Having survived bombs and bullets
Without mother, now he has to save his life
With just nine months experience

Johnny D
24th August 2009

Thursday, March 24, 2011

अर्ज है...

अपने ही धुन में रहकर दुनिया इस जग के सारे द्वार बंद करके दुखी होता है
गर वो दुनिया के विशालता को देखे तो 'डी' कितने हसीं लोग रहतें है यहाँ

--- स्वरचित --- 

अर्ज है...

भीग गयी आँखें पढकर भगत सिंह का अंतिम क्षण 
शत-शत प्रणाम मेरा भगत सिंह तू सदा अमर रहेगा 

--- स्वरचित ---

Wednesday, March 23, 2011

है कैसा ये भारत हमारा तुम्हारा...

गरीबों का रोज हो रहा है नरसंहार
नहीं है कोई चिंता किसी को यहाँ 
सड़ रहा है अनाज करोड़ों का हर साल
गाँव में बच्चे भूख से मर रहे है हज़ार
है कैसा ये भारत हमारा तुम्हारा...
है कैसा ये भारत हमारा तुम्हारा...

--- स्वरचित ---

Tuesday, March 22, 2011

अर्ज है...

बीते हुए हसीन वो पल आँखों में सजाया करते हैं 
नींद न आये तो उनसे बातें करते हैं तन्हाई में हम 

क्या वो भी ऐसे ही करती होगी रातों की तन्हाई में
पल तो हसीन थे उनके लिए भी 'डी' जो गुजरे थे संग 

ये कैसी है उलझन दोनों की ज़िन्दगी में हे खुदा 
खुलूस का सबब जान लेते पहले तो बेहतर होता 

--- स्वरचित --- 



Monday, March 21, 2011

THE LEADERS


Beg, Borrow, Steal
It is the only concerned ZEAL

Shameless, Greedy, Vicious
Three are the main VIRTUES

Innocent people they rule die
They never hesitate one bit to LIE

Each election they beg, borrow and steal
Accumulated wealth always they CONCEAL

Playing underdogs and being humble
The game they only play to RUMBLE

Once in power, they forget everything
All they care is how to continue STEALING

With all the money in the world
They presume to be nation’s LORD

When they win they get public’s hail
Ultimately their circle of life ends in JAIL

Johnny D
21st March 2011

Sunday, March 20, 2011

अर्ज है...

हम ज़माने ने झूठ को गले लगा कर हँसना सीख लिया 
सच को कड़वा समझ कर देखो कैसा ज़माना कर दिया 

--- स्वरचित --- 

Saturday, March 19, 2011

अर्ज है...

अब तक इंसानों ने इबादत नहीं की प्रकृति की 'डी'
सिखा जाता है कभी-कभी इंसानों को इसका सिला 
रोते हैं तभी जब भिखर जाता है सब कुछ हमारा
लालच इंसानों का देखिये कि अब तक नहीं सुधरे 

--- स्वरचित --- 

Friday, March 18, 2011

अर्ज है...

बना डाला है जन्नत को खाकदाँ 
कारे-जियाँ मशगुल है ये दुनिया
अस्तित्व मिट गए है सबके 'डी'
अब तो ना-उम्मीद ही उम्मीद है 

--- स्वरचित --- 


We have turned heaven (earth) into a dustbin
Everyone is busy in meaningless things
Individual respect have vanished
Hopelessness is the only Hope now

अर्ज है...

अब ज़रूरी है निकलना जल्द इस चौराहे से
हर चीज़ यहाँ पर चैनो-शिकन नज़र आते हैं 

--- स्वरचित --- 

Thursday, March 17, 2011

अर्ज है...

है आशियाना ये दर्द का 'डी' मगर
हर एक को यहाँ प्यार मिलेगा सिर्फ...

बिखरे है कई मोती इस जहान में मगर
हर मोती को हार में पिरोहा जायेगा यहाँ...

--- स्वरचित ---  

Wednesday, March 16, 2011

अर्ज है...

धड़क-धड़क कर बार-बार 'डी' ये सबसे कहता है
इस दिल में ऐ दुनियावालों देखो सिर्फ दर्द रहता है

--- स्वरचित ---


अर्ज है...

जब जाना ही है सब को खाली हाथ दुनिया से 'डी'
हर कोई ज़िन्दगी भर मुट्टी बंद क्यों रखते हैं अपना

--- स्वरचित ---



Monday, March 14, 2011

अर्ज है...

ख्याल बस एक ही ख्याल है इस ख्याल में
तेरे ही ख्यालों में डूबा रहता है ये दिल 'डी' 

--- स्वरचित --- 

Saturday, March 12, 2011

अर्ज है...

बहते हैं जब प्यार में आंसू
भीग जातें है गाल बेवजह  
'डी' होटों को छूते ही मोती
मुस्कुराहट में बदल जाती है 

कहा है जिसने भी
इश्क में बस रोना ही रोना है
इश्क किया होता 'डी' उसने अगर
उन मोतियों की कदर जान जाता वो 

--- स्वरचित ---

अर्ज है...


अजब है, होता नहीं है तेरा प्यार कम
जितना भी चुरा लूं 'डी' अपने दिल से 

--- स्वरचित ---


Friday, March 11, 2011

अर्ज है...

एक बार तो गले लगा कर देख दर्द को 
कितना सुकून है 'डी' इसके आगोश में 

--- स्वरचित --- 

अर्ज है...


हर दर्द सुकून में बदल जायेगा 'डी'
गर तू प्यार करना सीख जाए दर्द को

--- स्वरचित ---


अर्ज है...

वही प्यार कर सकता है जो दर्द को गले लगाना जानता है 'डी' 
वही मुस्कुरा सकता है जो दर्द को दुनिया से छुपाना जानता है 

--- स्वरचित ---

साथ तेरा...

तू न मुस्कुराये तो भी तुझे मुस्कुराता देखता हूँ 
तू दूर रहकर भी मेरे करीब होती है हर पल 'डी' 

मुस्कुराते रहो इसी तरह सारी ज़िन्दगी
जी लूँगा मैं देखकर तेरी तस्वीर को 'डी'

मैंने कब कहा कि तेरा साथ होना लाजमी है
हर यादें तो क़ैद है तेरी इस दिल में 'डी'

तूने जो प्यार दिया, उसे संभालकर दिल में छुपा कर रखा है
जब भी तेरी याद आती है, थोडा सा प्यार चुरा लेता हूँ दिल से 

तुमने फ़रमाया कि तुम छोड़ रही हो साथ मेरा
इस दिल से तो पूच्छो क्या छोड़ने देगा तुम्हे ये कभी 

जिस दिन से तुमने अपना घरौंदा मेरे दिल को बनाया था  
उस दिन से क़यामत तक हम एक पल भी जुदा नहीं रहेंगे

--- स्वरचित ---  


Wednesday, March 9, 2011

अर्ज है...

जिन्हें प्यार है जीना अंधकार के साये में  
रोशनी दुनिया की भी उन्हें कम लगती है
छोटा सा जुगनू अंधकार में रह कर भी
हर पल प्रकाश में जीता है शान से 'डी'...

--- स्वरचित ---

जुगनू

नहीं है खौफ जुगनू को अंधकार से 
नहीं है, खौफ, जुगनू को अंधकार से
डरते तो ये दुनियावाले हैं...

जो जीते तो हैं उजाले में मगर 
जो जीते तो हैं, उजाले में मगर
इस उजाले का अंधकार...

है गहरा कितना, ये उन्हें मालूम ही नहीं

दफ़न न करना उस लौ की रौशनी को अपने दिल में 'डी'
इस जगमगाती दुनिया में चारो ओर अँधेरा ही अँधेरा है 


सवा सौ करोड़ जुगनू टिमटिमाने लगे साथ अगर 'डी'
सूरज भी शर्मा जायेगा, अंधकार डर कर छुप जायेगा


अँधेरी दुनिया ने न जाना कितना सुकून है प्रकाश में जीना
हम टिमटिमाते लौ ही सही, प्रकाश में जीना हमें प्यारा है 'डी'

--- स्वरचित ---

Tuesday, March 8, 2011

अर्ज है...

सवा सौ करोड़ जुगनू टिमटिमाने लगे साथ अगर 'डी' 
सूरज भी शर्मा जायेगा, अंधकार डर कर छुप जायेगा 

--- स्वरचित ---


UPAASMAR - THE TASTE OF HUNGER

(This poem was inspired after watching
Ajay Saklani's Documentary on Melghat)


सही मायने में कहूं...
आज मेरा परिचय भूख से पहली बार हुआ 
इतना भयानक रूप...
मैंने पहले सिर्फ अख़बारों के पन्नो पर देखा था

छोटे-छोटे नन्ही कलियाँ...
जिन्हें खिल कर इस जहान को खूबसूरत बनाना था
भूख नरभक्षी बनकर...
निगल रही थी उन्हें बेहिसाब, बेदर्दी से

निसहाय माँ...
बेबसी में भेंट चढ़ा रही थी एक एक करके
पिता के आँखों में...
अश्रू के नाम पर सिर्फ दर्दनाक हकीकत बयान कर रही थी  

इतनी बेबसी...
भूख से मेरा परिचय...
UPAASMAR - THE TASTE OF HUNGER ने कराया   

मेलघाट की हकीकत...
एक सवाल पूरे जगवालो से कर रही है

अगर शेर बचाना ज़रूरी है...
क्या बलि नन्हे-मुन्ने बच्चों को भूख से मारना
इतना ज़रूरी बन गया इस जगवालों के लिए?

क्यों, मैं पूछता हूँ क्यों हम इतने निदर्यी बन गए हैं?
क्यों, हम जगमगाती दुनिया से निकल कर
भारत की हकीकत के बारे में बातें भी नहीं करते हैं?

क्यों हम इन ज़िन्दगी से खिलवाड़ कर रहे हैं?
गरीब की दर्दनाक ज़िन्दगी...
कब दो वक़्त की रोटी के मोहताज़ से बाहर निकलेगी?

--- स्वरचित ---

Monday, March 7, 2011

अर्ज है...

नहीं है खौफ जुगनू को अंधकार से शबनम
नहीं है, खौफ, जुगनू को अंधकार से शबनम
डरते तो ये दुनियावाले जो जीते तो हैं उजाले में मगर 
इस उजाले का अंधकार कितना गहरा है, ये उन्हें मालूम ही नहीं   

--- स्वरचित ---


अर्ज है...

अँधेरी दुनिया ने न जाना कितना सुकून है प्रकाश में जीना
हम टिमटिमाते लौ ही सही, प्रकाश में जीना हमें प्यारा है 'डी' 

--- स्वरचित --- 


अर्ज है...

दफ़न हो गए हैं वो सारे चिराग अहले चमन में 'डी' 
जिनकी लौ दूर तक अंधकार को प्रकाशित करती थी

दफ़न न करना उस लौ की रौशनी को अपने दिल में 'डी'
इस जगमगाती दुनिया में चारो ओर अँधेरा ही अँधेरा है 

--- स्वरचित ---

Sunday, March 6, 2011

सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...

लुट न जाये जब तलक सब की इज्ज़त
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
मारे जब तलक न जायेंगे हर गरीब
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
ज़मीन जब तलक न खिसक जाये पांव तले
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
२०० साल सोये तो अंग्रेज़ लूट ले गए सब कुछ
अभी तो सिर्फ ६३ साल ही हुए है नींद में 
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
जब तलक लूट न ले जायेंगे सब कुछ
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...
सोते रहेंगे हर हिन्दुस्तानी बेखबर...

--- स्वरचित ---

Friday, March 4, 2011

अर्ज है...

कोहराम चारो ओर दुनिया में बयान करती है 'डी' 
खुलूस की खुलूस को न समझ सकी ज़माना अब तक 

--- स्वरचित ---

Thursday, March 3, 2011

अधुरा चित्र...

लाखों है रंग चमन में लेकिन
हर रंग है फीका खून के रंग से...
कैसे भरूँ 'डी' इस चित्र में रंग
हर रंग तो फीका है ज़माने में....

क्या ये चित्र कभी होगी रंगीन
क्या इसमें भरे जायेंगे सभी रंग
रंग जो मुझे चाहिए इस चित्र के लिए
जहान में अब तक 'डी' मिले नहीं क्यों..


कहाँ मिलेगा भगत सिंह वाला बसंती रंग मुझे?
लाल बहादुर शास्त्री वाला श्वेत क्या मिलेगा कभी?
नेताजी वाला रंग लाल गर्म लहू से सिंचा हुआ?
आजाद जैसा इन्द्रदनुशी रंग कहाँ से लाऊँ मैं?


श्वेत-श्याम में ये अधुरा चित्र
पुकार रहा है रंगों को
बेरंग न रह जाये ये चित्र
आओ इस चित्र को रंगीन बनाये 



--- स्वरचित --- (The poem is still developing...)

Wednesday, March 2, 2011

THE KILLING FIELDS PM MANMOHAN SINGH HAS CREATED


(The poem was inspired by the 28th Feb 2011
killings of innocent poor villagers by police in 
Kakarapalli, Andhra Pradesh )


है ये दास्तान मेरे हिंदुस्तान की
जहाँ गरीबों को रोज रौंदा जा रहा
गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है 
हर लाश की कीमत लगायी जा रही है
सब हमारे प्रधान मंत्री के कहने पर
एक नया इतिहास रचा जा रहा है

Indian Shining का नारा लगाया जा रहा है 
हकीकत बयान कर रही है मगर एक सच की
जहाँ चंद अमीरजादे और अमीर बन जाये
उसके लिए सरकार गरीबों की बलि चढ़ा रही है 
छोटे-छोटे गाँवों में, आदिवासी इलाकों में
रोज सरे आम सरकारी कत्लेआम हो रहा है

Police तो बनायीं गयी थी अवाम की रक्षा के लिए
पर यहाँ तो ये बन बैठें है सरकारी दरिन्दे
गरीबों पर अत्याचार कोई नयी बात नहीं
ये तो रोज गरीबों का शिकार करते हैं सरकार के कहने पर
है ये दास्तान मेरे हिंदुस्तान की
जहाँ गरीबों को रोज रौंदा जा रहा

कौन रोकेगा इस नरसंहार को?
कब तक यूँ ही गरीबों का बलि चढ़ेगा?
कब तक भारतवासी यूँ ही मुख्बदिरों की तरह चुप रहेंगे?
क्यों विश्व के ठेकेदार UNO ये तमाशा चुपचाप देख रही है?
कब भारत के प्रधान मंत्री अपना नरसंहार बंद करेगा?
ये है दुखद दयनीय दास्तान मेरे हिंदुस्तान की...

--- स्वरचित ---  

Tuesday, March 1, 2011

प्यार

ये कश्ती गुजरती है भँवरों से
फिर भी है तुमने प्यार किया

खायी थी कसमे लाख मगर
उन पर न तुमने ऐतबार किया

मुक़द्दर में न सही वह थी अगर
तुमने उनसे क्यों फिर प्यार किया 

नफरत दिल में पनपती है अगर
न कहना किसी से कि तुमने प्यार किया

नफरत कैसे कर सकते हो उनसे
'डी' जिसको है तुमने प्यार किया

--- स्वरचित ---