Tuesday, December 21, 2010

दर्द-ऐ-दिल

जब मेरे दिल में दर्द उठा तो, किसी को साथ न पाया मैंने
और एक मैं हूँ  कि हर दर्द-ए-दिल पर मलहम लगता चला गया...

-- स्वरचित --

दुनियावालों से तो भली है मेरी तन्हाई
क्यूँकि जब कभी भी दुनियावालों ने साथ न दिया
मेरी तन्हाई ने गर्मो जोशों से हरदम गले लगाये रखा
महसूस ही होने न दिया
कि मैं दुनियावालों के लिए उस से जुदा था कभी
है अजीब दस्तूर दुनिया का ये भी 'डी'
कुछ सीख ले अपनी तन्हाई से ही सही...

-- स्वरचित --

आज ये दौर शेरों शायरी का
न जाने कब ख़तम होगा
रात तो बीत जाएगी मगर
दर्द-ऐ-दिल का मेरा होगा?

-- स्वरचित --

चांदनी रात है, फिर भी गहरा है ये सन्नाटा
लोग सो रहे हैं बेखबर, मगर मेरा दिल ये रो रहा है क्यों?
एक तड़प है मेरे दिल में ये क्यों
दुनियावाले तो बेखबर ही रहतें हैं हरदम

-- स्वरचित --

दिल का भोझ मैंने शेर लिख कर हल्का करना चाहा था मगर
सोचा नहीं था बयां दर्द-ऐ-दिल रात बार शायर बना डालेगा मुझे
 
-- स्वरचित -- 

नहीं है ये दर्द-ऐ-दिल 'डी' इश्क का सबब
ऐ दुनियावालों बस यूँ ही दर्द-ऐ-दिल बयां कर रहा हूँ मैं
इश्क होता अगर मुझे तो, इश्क, होता अगर मुझे तो
हर दर्द को चुपचाप सहता चला जाता ये 'डी'
इश्क जूनून बन जाता मेरा
फिर दर्द का बयां 'डी' करता कैसे?

-- स्वरचित -- 

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