Sunday, January 30, 2011

ये दिल... (30th Jan 2011)

ये दिल...

तुम तो चली गयी छोड़ कर मुझे
ये दिल मगर आज भी गुफ्तगू करता है तुमसे...

खफा होकर भी क्या इस दिल से निकल सकोगी
खफा होकर भी, क्या इस दिल से निकल सकोगी
इस छुप्पी से भी क्या तुम मुझे भुला सकोगी?

भूल गएं है वह जिन्हें हम रोज याद करते हैं
भूल गएं है वह, जिन्हें हम रोज याद करते हैं
याद करके वह रोज, 'डी' भूलने का नाटक करते हैं!

दिल्लगी से दर्द है अच्छा
दिल्लगी, से दर्द है अच्छा
फ़िज़ूल की गुफ्तगू से बेहतर है शायरी करना
फ़िज़ूल की गुफ्तगू से, बेहतर है शायरी करना
पल जो बर्बाद होकर दर्द में तब्दील होना था
पल, जो बर्बाद होकर दर्द में तब्दील होना था
इस से बेहतर तो 'डी' शायर बन जाना है अच्छा 

मुझे और ग़म दे सको तो खुदा रहमत होगी तेरी
मुझे और ग़म दे सको, तो खुदा रहमत होगी तेरी
इसी बहाने 'डी' शायरी दुनियावालों का दिल तो बहलाएगी!

--- स्वरचित --- 

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