Sunday, February 20, 2011

मेरा ये जहान

मेरा ये जहान

छुट गया इस जहान से इक जहान मगर
छुट गया, इस जहान से इक जहान मगर
तन्हाई में रहने की अब आदत सी हो गयी है!

भीड़ बेचैन कर देती है है मुझको ऐ दुनियावालो
भीड़, बेचैन कर देती है मुझको, ऐ दुनियावालो
अकेले जीने का दर्द-ओ-सुकून 'डी' कैसे बयान करूँ!!


--- स्वरचित ---




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