Tuesday, February 15, 2011

इश्क - कल और आज (15th Feb 2011)

इश्क - कल और आज 

आज भी तरो-ताज़ा है खुश्बू इश्क की ज़माने से
हर खण्डहर दस्ताने-ए-लैला-मजनू बयाँ करता है

कभी खिलखिलाती थी ये खण्डहर उनके प्यार में
आज मगर यहाँ नए प्रेमी जोड़ी इश्क में खोता है

पहले था इश्क एक जूनून, इबादत खुदा का
अब तो रोज इंसानों के बाज़ारों में बिकता है

ना कोई है लैला या मजनू अब तो जहान में 'डी'
हर शाक पर मगर खरीदार अब यहाँ पर रहता है

फर्क उस और इस ज़माने में है बस इतना
मरता नहीं कोई, अब तो हर कोई इसे तराजू में तोलता है

--- स्वरचित --- 



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