Saturday, May 21, 2011

अर्ज है...


दर्द शायर का नहीं कोई है पहचानता
दर्द शायर का नहीं कोई है पहचानता
हर दर्द का सिला बज़्म-ऐ-इबादत  
वाह-वाही के गूँज में रह जाती है 'डी' 

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