Thursday, December 8, 2011

आ भी जाओ


यादों के सहारों में, 
तुम तो भूल चली हो मुझको
भूली-बिसरी बातों में,
करता हूँ मगर तुमको ही याद मैं

ये कैसा है प्यार हमारा-तुम्हारा

नफरत का ये शमा है कैसा हे खुदा
अब आ भी जाओ, आ भी जाओ
अब इन खुली हुई बाँहों में


तुमसे तो दूर रहा न मैं इक पल भी

कैसे समझाओं मैं तुम्हें, 
अब आ भी जाओ, आ भी जाओ
अब इन तरसती हुई बाँहों में


--- स्वरचित ---
८ दिसम्बर २०११

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