खुलूस
बेइंतेहा खुलूस, नफरत का सबब बन जाती है क्यों!
नफरत तो, खुलूस की पहली निशानी होती है 'डी'!!
ये जहान भी अजीबो-गरीब जगह है, ऐ दुनियावालों!
हर शक्श जो है तलाशता, वही बस मिलता नहीं है यहाँ!!
मिलता है खुलूस, तकदीर से ऐ खुदा!
एक तू है, जो मिलता भी नहीं है कभी!!
जिसे मिल जाये खुलूस, वो तो मरने की बात करता है!
जिसे मिलता नहीं, वो तो जीने से भी डरता है 'डी'!!
ऐ खुदा, है अंजाम-ऐ-खुलूस मौत तो क्या!
मोहब्बत किया था, किया है और करते रहेंगे!!
दर्द और तन्हाई ही तो, बस नसीब होगा मेरा!
खुलूस की ये सज़ा सर आँखों पर है 'डी'!!
--- स्वरचित ---
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