न जाने कब ये लुप्त हो जायेगा...
'डी' ज़िन्दगी पल दो पल में सिमट जाएगी
मुस्कुराले खुल कर वर्ना मौत गले लगा लेगी
चंद आँसूंओं की कीमत क्यों हम ग़म को बनाएं
चमकते मोती हैं ये 'डी',
चमकते, मोती हैं ये 'डी',
इन्हें आभूषण की तरह सजाएं तो बेहतर होगा--- स्वरचित ---
No comments:
Post a Comment