शबनम की चमचमाती छोटी बूँदें
झिलमिलाती अटखेलियाँ करती
लुप्त हो जाती है विहान के पल
एक ठंडी चादर भिखेर धरती पर
वे नन्ही-नन्ही बूँदें किस कदर दे जाती है
निस्वार्थ अहसास शकुन की, दुनिया को 'डी'
पल, बस कुछ पल में इतना बड़ा कार्य कर गयी
हम इंसान इन छोटी सी बूंदों से भी सीखे नहीं
--- स्वरचित ---
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