यादों के सहारों में,
तुम तो भूल चली हो मुझको
भूली-बिसरी बातों में,
करता हूँ मगर तुमको ही याद मैं
ये कैसा है प्यार हमारा-तुम्हारा
नफरत का ये शमा है कैसा हे खुदा
अब आ भी जाओ, आ भी जाओ
अब इन खुली हुई बाँहों में
तुमसे तो दूर रहा न मैं इक पल भी
कैसे समझाओं मैं तुम्हें,
अब आ भी जाओ, आ भी जाओ
अब इन तरसती हुई बाँहों में
--- स्वरचित ---
८ दिसम्बर २०११
No comments:
Post a Comment