तुम्हें भुला कर ही अब तो याद करतें हैं हम
तुम हो कि हमें याद करते-करते भूल गयी
भूल से याद आ भी जाती है अगर तुम्हारी
तो हम याद से तुम्हें भूलना पसंद करेंगे 'डी'
हर यादों में एक भूल याद आती है अब तो
ये भूल मगर कितनी अनोखी सी प्यारी थी
आज, कल भी तो वहीँ थी, फिर क्यों 'डी'
कल का वो आज, कहीं खो गया है कहाँ
चलते-चलते बहुत दूर निकल आयें हैं हम तो
अब तो क्षितिज भी धुंधला सा दिखता है 'डी'
--- स्वरचित ---
No comments:
Post a Comment